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संतों के साथ बेजुबानों को भी रास आ रही है महाकुम्भ नगर की भव्य दुनिया

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अद्भुत महाकुंभ

महाकुंभ में अखाड़ों और नागा संन्यासियों के शिविर में मिल रही है पशु प्रेम की झलक

पेट सोमा और लाली भी अपने गुरु संतों के साथ कर रही हैं कल्पवास

साधना और भक्ति रंग में रंगे है पेट लवर्स नागा संन्यासियों को देखने के लिए उमड़ रही हैं पर्यटक और श्रद्धालुओं की भीड़

महाकुम्भ नगर, 28 दिसंबर। प्रयागराज में संगम की रेती पर आयोजित होने जा रहे महाकुम्भ में अभी से भक्ति ,साधना और अध्यात्म की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है। महाकुम्भ के अखाड़ा सेक्टर में नागा संन्यासियों के शिविर में इसके विभिन्न रंग देखने को मिल रहे हैं। यहां नागा संन्यासियों के पशु प्रेम ने सबका दिल जीत लिया है।

नागा संन्यासी श्रवण गिरी की साधना का हिस्सा है लाली
महाकुम्भ नगर के अखाड़ों के शिविरों में संन्यासियों की एंट्री हो चुकी है। देश के कोने कोने से आए अद्भुत साधक और संन्यासी यहां दिखने लगे हैं। इनमें कुछ अपने पशु जीव प्रेम के लिए अलग नजर आ रहे हैं।
मध्य प्रदेश के नरसिंह पुर से महाकुम्भ आए महंत श्रवण गिरी के एक हाथ में भगवान गणेश के नाम जाप की माला रहती है तो दूसरे हाथ में डॉगी लाली का पट्टा। लाली उनके लिए बेजुबान जानवर नहीं बल्कि उनके लिए उनकी साधना का हिस्सा है। महंत श्रवण गिरी बताते है कि 2019 के कुम्भ में प्रयागराज से काशी जाते समय रास्ते में उन्हें लाली मिली थी। दो महीने की लाली तब से उनके साथ है। जब वह साधनारत होते हैं तो लाली शिविर के बाहर उनकी रखवाली करती है। इतना ही नहीं लाली का हेल्थ कार्ड भी उन्होंने बनवाया है जिसमें उसे निशुल्क उपचार मिलता है।

श्री महंत तारा गिरी की आंखों का तारा है सोमा
महाकुम्भ के अखाड़ा सेक्टर में महंत श्रवण गिरी अकेले पेट लवर नहीं हैं। गुड़गांव के खेटाबास आश्रम से महाकुम्भ आए जूना अखाड़े के श्री महंत तारा गिरी अपने पेट सोमा के साथ ही अखाड़े के बाहर धूनी
रमा रहे हैं। श्री महंत तारा गिरी बताते है कि सोमवार के दिन सोमा का जन्म हुआ था इसलिए उसका नाम सोमा रखा गया। सोमा की देखभाल महंत तारा गिरी की शिष्या पूर्णा गिरी करती हैं। पूर्णा गिरी बताती हैं कि साधु संतों के कोई परिवार या बच्चे तो होते नहीं हैं ऐसे में यहीं सोमा जैसे पेट ही उनकी संतान है जिसे वो एक अतिथि की तरह रखती है। सोमा भी उनकी तरह तिलक लगाती है, अपनी जटाएं बंधवाती हैं। सोमा भी पूरी तरह सात्विक भोजन ग्रहण करती है। पूर्णा गिरी बताती है कि जितना समय उन्हें अपनी साधना के लिए तैयार होने में नहीं लगता उससे अधिक सोमा को सजाने संवारने में लगता है।

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