पेले होने का मतलब

आर. के. सिन्हा 

पेले के निधन से सारी दुनिया उदास है! उन्होंने अपने चाहने वालों को आनंद के अनगिनत अवसर दिए! पेले के चाहने वाले कहते हैं कि  वे  महानतम थे।  वे तीन बार जीती फीफा वर्ल्ड कप विजेता ब्राजील टीम के सदस्य रहे। वे दो बार उन ब्राजील की टीमों में रहे। उन्हें साल 2000 में फीफा फ्लेयर आफ दि सैंचुरी का भी सम्मान मिला।  पर क्या पेले को मुख्य रूप से इसी आधार पर सर्वकालिक महानतम खिलाड़ी माना जाए क्योंकि वे तीन बार जीती ब्राजील टीम में सदस्य थे? वे 1958 में ब्राजील की टीम में थे। वे तब  मात्र 17 साल के थे। वैसे वे 1962 और 1966 के वर्ल्ड कपों में चोटिल होने के कारण कोई खास जौहर नहीं दिखा सके थे। हां, 1970 के वर्ल्ड कप में वे अपने पीक पर थे। पर उस टीम के बारे में कहा जाता है कि वो वर्ल्ड कप में अब तक खेली महानतम टीम थी। वो टीम वैसे कहा जाय तो पेले के बिना भी  वर्ल्ड कप जीतने की कुव्वत रखती थी। उस टीम में गर्सन, टोस्टओ, रेविलिनिओ और जेरजिन्हो जैसे महान फाऱवर्ड खिलाड़ी थे। ये किसी भी टीम की रक्षा पंक्ति को भेद सकने वाले महान खिलाडी थे।

एक बात समझी जाए कि फुटबॉल का मतलब बड़ी शॉट खेलना कतई नहीं है। बड़ा खिलाड़ी तो वो ही होता है, जो ड्रिबलिंग करने में माहिर होता है। उसे ही दर्शक देखने जाते हैं। इस लिहाज से पेले बेजोड़ रहे हैं। खेल के मैदान में पेले के दोनों पैर चलते थे। उनका हेड शॉट भी बेहतरीन होता था। पेले के 1970 में इटली के खिलाफ फाइनल में हेडर से किए गोल को ज़रा याद करें। उस गोल के चित्र अब भी यदा-कदा देखने को मिल जाते हैं। वैसे, उस फाइनल में एक गोल कार्लोस एलबर्टों ने पेले की ही पास पर किया था। अगर गेंद उनके बायें पैर पर आ गई  उनका गेंद पर नियंत्रण और विरोधी खिलाड़ी को छकाने की कला दुबारा देखने को नहीं मिलेगी। पेले के  बारे में विरोधी टीम  को पता ही नहीं चलता था कि वे कब अपनी पोजीशन चेंज कर लेंगे। वे मैदान में हर जगह मौजूद रहते थे। पेले की लाजवाब ड्रिबलिंग कला थी।  उनका अपनी टीम पर गजब का प्रभाव था। हांपासिंग और रफ्तार में दोनों का कोई सानी नहीं हुआ।

पेले ने अपने करियर में 760  गोल किये जिनमें से 541 लीग चैम्पियनशिपों में किये गए थेजिसके कारण वे सर्वकालीन सर्वाधिक गोल करने वाले खिलाड़ी माने जाते हैं। कुल मिलाकर पेले ने 1363 खेलों में 1281 गोल किए। हालांकि इनके आंकड़ों को चुनौती भी मिलती है। पेले खुद ही गोल करने के लालच में नहीं रहते थे। वे साथी खिलाड़ियों को गोल करने के बेहतरीन अवसर भी देते थे।  वे बड़े और अहम मैचों में छा जाते थे। वे छोटी-कमजोर टीमों के खिलाफ अपने जौहर नहीं दिखा पाते थे। 

 अगर बात मैदान से हटकर करें तो पेले फुटबॉल के मैदान  को  छोड़ने   के बाद  सामाजिक कार्यों से जुड़ गए। ब्राजील में करप्शन से लेकर गरीबी के खिलाफ लड़ते रहे। पेले को 1992 में पर्यावरण के लिये संयुक्त राष्ट्र का राजदूत नियुक्त किया गया। उन्हें 1995 में खेलों की दुनिया में विशेष योगदान के लिये युनेस्को सद्भावना  राजदूत बनाया। पेले ने ब्राज़ीली फुटबॉल में भ्रष्टाचार को कम करने के लिये एक कानून प्रस्तावित कियाजिसे पेले कानून के नाम से जाना जाता है। माराडोना ने पेले की तरह का कोई सामाजिक आंदोलन से अपने को न हीं जोड़ा। 

पेले  का कद इतना ऊंचा था कि उनसे अमेरिका के राष्ट्रपति भी आदर से मिलते  थे। उनका  बचपन अभावों में गुजरा।  पेले बेहद शांत और विनम्र थे।  

 पेले के भारत में भी करोड़ों फैंस  हैं। वे दो  बार भारत आए। वे भारत को प्रेम करते रहे। वे पहली बार जब कोलकाता आए थे तो देर रात को एयरपोर्ट पहुंचने पर भी हजारों फैन्स ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया था। वे जब भी यहां आए तो भारत के फुटबॉल फैन्स ने उन्हें भरपूर स्नेह और सम्मान दिया। पेले 1977 में भारत आए थे। पेले कोलकाता (तब कलकता में) में एक प्रदर्शनी मैच खेलने आए थे। वे तब काज़्मोस क्लब से जुड़े हुए थे। काज़्मोस का एक मैच ईस्ट बंगाल के साथ रखा गया था। मुकाबला बराबर रहा था। बंगाली भद्रलोक पेले को खेलता देखकर अभिभूत थे। धन्य महसूस कर रहे थे। पेले का पीक तब तक नहीं रहा था।

 पेले ने कभी अपने चमत्कारी खेल का प्रदर्शन दिल्ली में नहीं  किया! पर वे साल 2015 में दिल्ली आए थे। वे सुब्रत कप के फाइनल मैच के  मुख्य अतिथि थे। पेले ने फाइनल मैच को देखा  था। उन्हें देखने के लिए अंबेडकर स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। उन्होंने फाइनल मैच के बाद एक खुली जीप पर सारे स्टेडियम का चक्कर लगाकर दर्शकों का अभिवादन स्वीकार किया था। पेले ने वहां पर मौजूद दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘मैं सुब्रतो कप में हिस्सा बनकर बहुत खुश हूं। मुझे भारत के युवा फुटबॉल खिलाड़ियों से मिलकर बहुत अच्छा लगा।’ वे उम्र दराज होने पर भी बिल्कुल फिट लग रहे थे। भारत महिला फुटबॉल टीम के कोच रहे अनादि बरूआ को याद है वह दिन जब पेले को देखने अंबेडकर स्टेडियम में  सभी उम्र के हजारों फुटबॉल प्रेमी पहुंचे थे। हालांकि सुरक्षा कारणों के चलते वे किसी को ऑटोग्राफ नहीं दे सके थे!

पेले को 2015 में दिल्ली में लाने का श्रेय भारतीय वायुसेना को ही  जाता है! पेले ने फाइनल को देखने आए दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘मैं भारतीय वायुसेना की कड़ी मेहनत से प्रभावित हूं।‘   सुब्रतो कप का सफल आयोजन भारतीय वायुसेना ही करती है। चूंकि एयऱ चीफ मार्शल सुब्रत मुखर्जी फुटबॉल में गहरी दिलचस्पी लेते थेइसलिए उनके नाम पर यह चैंपियनशिप चालू हुई थी। सुब्रतो मुखर्जी भारतीय एयरफोर्स के पहले प्रमुख थे। वे अप्रैल 1954 को भारतीय वायुसेना के पहले प्रमुख बनाए गए थे। उनको फादर ऑफ द इंडियन एयर फोर्स कहा जाता है। सुब्रतो मुखर्जी बंगाल के एक प्रमुख परिवार से था। उनके पिता सतीश चंद्र मुखर्जी आईसीएस अफसर थे। सुब्रत मुखर्जी 1932 में वायुसेना में शामिल हुए।

पेले को दुनिया सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में से एक रूप में याद रखेगी! उनका कद इतना ऊंचा हो गया था कि वे अपने जीवनकाल में ही किसी  दंतकथा का पात्र बन गए थे!

 अगर बात मैदान से हटकर करें तो पेले फुटबॉल के मैदान  को  छोड़ने   के बाद  सामाजिक कार्यों से जुड़ गए। ब्राजील में करप्शन से लेकर गरीबी के खिलाफ लड़ते रहे। पेले को 1992 में पर्यावरण के लिये संयुक्त राष्ट्र का राजदूत नियुक्त किया गया। उन्हें 1995 में खेलों की दुनिया में विशेष योगदान के लिये युनेस्को सद्भावना  राजदूत बनाया। पेले ने ब्राज़ीली फुटबॉल में भ्रष्टाचार को कम करने के लिये एक कानून प्रस्तावित कियाजिसे पेले कानून के नाम से जाना जाता है। माराडोना ने पेले की तरह का कोई सामाजिक आंदोलन से अपने को न हीं जोड़ा। 

पेले  का कद इतना ऊंचा था कि उनसे अमेरिका के राष्ट्रपति भी आदर से मिलते  थे। उनका  बचपन अभावों में गुजरा।  पेले बेहद शांत और विनम्र थे।  

 पेले के भारत में भी करोड़ों फैंस  हैं। वे दो  बार भारत आए। वे भारत को प्रेम करते रहे। वे पहली बार जब कोलकाता आए थे तो देर रात को एयरपोर्ट पहुंचने पर भी हजारों फैन्स ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया था। वे जब भी यहां आए तो भारत के फुटबॉल फैन्स ने उन्हें भरपूर स्नेह और सम्मान दिया। पेले 1977 में भारत आए थे। पेले कोलकाता (तब कलकता में) में एक प्रदर्शनी मैच खेलने आए थे। वे तब काज़्मोस क्लब से जुड़े हुए थे। काज़्मोस का एक मैच ईस्ट बंगाल के साथ रखा गया था। मुकाबला बराबर रहा था। बंगाली भद्रलोक पेले को खेलता देखकर अभिभूत थे। धन्य महसूस कर रहे थे। पेले का पीक तब तक नहीं रहा था।

 पेले ने कभी अपने चमत्कारी खेल का प्रदर्शन दिल्ली में नहीं  किया! पर वे साल 2015 में दिल्ली आए थे। वे सुब्रत कप के फाइनल मैच के  मुख्य अतिथि थे। पेले ने फाइनल मैच को देखा  था। उन्हें देखने के लिए अंबेडकर स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। उन्होंने फाइनल मैच के बाद एक खुली जीप पर सारे स्टेडियम का चक्कर लगाकर दर्शकों का अभिवादन स्वीकार किया था। पेले ने वहां पर मौजूद दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘मैं सुब्रतो कप में हिस्सा बनकर बहुत खुश हूं। मुझे भारत के युवा फुटबॉल खिलाड़ियों से मिलकर बहुत अच्छा लगा।’ वे उम्र दराज होने पर भी बिल्कुल फिट लग रहे थे। भारत महिला फुटबॉल टीम के कोच रहे अनादि बरूआ को याद है वह दिन जब पेले को देखने अंबेडकर स्टेडियम में  सभी उम्र के हजारों फुटबॉल प्रेमी पहुंचे थे। हालांकि सुरक्षा कारणों के चलते वे किसी को ऑटोग्राफ नहीं दे सके थे!

पेले को 2015 में दिल्ली में लाने का श्रेय भारतीय वायुसेना को ही  जाता है! पेले ने फाइनल को देखने आए दर्शकों को संबोधित करते हुए कहा था, ‘मैं भारतीय वायुसेना की कड़ी मेहनत से प्रभावित हूं।‘   सुब्रतो कप का सफल आयोजन भारतीय वायुसेना ही करती है। चूंकि एयऱ चीफ मार्शल सुब्रत मुखर्जी फुटबॉल में गहरी दिलचस्पी लेते थेइसलिए उनके नाम पर यह चैंपियनशिप चालू हुई थी। सुब्रतो मुखर्जी भारतीय एयरफोर्स के पहले प्रमुख थे। वे अप्रैल 1954 को भारतीय वायुसेना के पहले प्रमुख बनाए गए थे। उनको फादर ऑफ द इंडियन एयर फोर्स कहा जाता है। सुब्रतो मुखर्जी बंगाल के एक प्रमुख परिवार से था। उनके पिता सतीश चंद्र मुखर्जी आईसीएस अफसर थे। सुब्रत मुखर्जी 1932 में वायुसेना में शामिल हुए।

पेले को दुनिया सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में से एक रूप में याद रखेगी! उनका कद इतना ऊंचा हो गया था कि वे अपने जीवनकाल में ही किसी  दंतकथा का पात्र बन गए थे!