- लंबी दूरी तय कर मेट्रो सिटीज जाने के खर्च व परेशानी के बिना लखनऊ में हुआ ट्रांसप्लांट
- ट्रांसप्लांट के बाद फॉलोअप के लिए नही करनी पड़ेगी लंबी दूरी तय
प्रयागराज। शहर के रहने वाले विनोद पटेल व मोहम्मद मंसूर का अपोलोमेडिक्स अस्पताल में सफल लिवर ट्रांसप्लांट हुआ। विनोद को उनकी पत्नी व मोहम्मद मंसूर को उनकी बेटी ने अपने लिवर का हिस्सा डोनेट किया। लिवर ट्रांसप्लांट के बाद दोनों मरीज व उनके डोनर्स सभी स्वस्थ हैं। विनोद व मंसूर काफी समय से पेट में अत्यधिक दर्द, उल्टी, जॉन्डिस और सोचने – समझने की शक्ति क्षीण होने की स्थिति में पहुंच चुके थे। प्रयागराज में डॉक्टर्स को दिखाने पर पता चला कि उनका लिवर बुरी तरह से डैमेज हो चुका है और ट्रांसप्लांट ही एक मात्र इलाज का विकल्प है। उन्हें सलाह मिली कि वे मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई या हैदराबाद जाकर लिवर ट्रांसप्लांट करा लें। अब उनके सामने चुनौती थी कि लिवर ट्रांसप्लांट के लिए एक तो लंबी दूरी तय कर इन महानगरों में से एक में पहुंचें, फिर तीमारदारों सहित रहने का इंतजाम करें। यह विकल्प न केवल पीड़ादायक था बल्कि लिवर ट्रांसप्लांट के खर्च के साथ अनावश्यक खर्चे भी जुड़ रहे थे। इस बीच वे डॉ वलीउल्लाह सिद्दीकी,कंसलटेंट सर्जिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एचपीबी एंड लीवर ट्रांसप्लांट अपोलो अस्पताल, लखनऊ से मिले। डॉ सिद्दीकी ने उन्हें अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल लखनऊ में उपलब्ध लिवर ट्रांसप्लांट सुविधाओं के बारे में जानकारी दी। डॉ सिद्दीकी ने अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल में हुए सफल लिवर ट्रांसप्लांट के केसेज के बारे में भी विस्तार से बताया।अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल में उपलब्ध सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टर्स व अल्ट्रामॉडर्न चिकित्सा उपकरणों के चलते ट्रांसप्लांट सफल रहा। अब दोनों पेशेंट्स और डोनर्स दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं और पहले की तरह सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं।अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल के एमडी व सीईओ डॉ मयंक सोमानी ने बताया, “एनसीआर के अतिरिक्त अपोलोमेडिक्स यूपी का पहला प्राइवेट हॉस्पिटल है, जिसे अन्य अंगों के प्रत्यारोपण के साथ-साथ हृदय और फेफड़े के प्रत्यारोपण के लिए भी लाइसेंस प्राप्त है। अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल में सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की इन हाउस टीम 24×7 मौजूद रहती है, जो ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होने पर शीघ्र निर्णय लेकर समय रहते ट्रांसप्लांट कर मरीज की जान बचा सकती है।”
डॉ सोमानी ने बताया, “मानव शरीर में लीवर ही एकमात्र ऐसा अंग है जो दोबारा विकसित हो जाता है। ऐसा होने के लिए लिवर के केवल 25 फीसदी मूल टिशूज की जरूरत होती है। अगर किसी व्यक्ति को लीवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है और कोई नजदीकी रिश्तेदार लीवर का थोड़ा सा हिस्सा दान कर दे तो यह लगभग चार हफ्तों में अपने मूल आकार में लौट आता है।”
डॉ वलीउल्लाह सिद्दीकी ने कहा, “ट्रांसप्लांट में बाद मरीज को फॉलोअप के लिए बार-बार अस्पताल आना पड़ता है ताकि डॉक्टर्स उनकी रिकवरी और ट्रांसप्लांट किए गए लिवर की शरीर मे स्वीकार्यता की स्थिति की नियमित जांच कर सकें। अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल लखनऊ में ट्रांसप्लांट सर्जरी होने से प्रयागराज के मरीजों के लिए लखनऊ जाना बहुत सुगम है और वे आसानी से फॉलोअप के लिये डॉक्टर से नियमित तौर पर मिल सकते हैं। वहीं अन्य मेट्रो शहरों की दूरी अधिक होने से मरीज और उनके अटेंडेंट्स के लिए यह बेहद मुश्किल भरी प्रक्रिया होती।
भारत में प्रतिवर्ष समय से अंगदान न मिलने के चलते लगभग 5 लाख लोगों के जीवन पर खतरा मंडरा रहा होता है। ऐसा इसलिए कि दुनिया भर में भारत में ऐच्छिक अंगदान या शरीर दान की दर विश्व में सबसे कम है। इसका सबसे बड़ा कारण है, जागरूकता न होना। इसके अलावा धार्मिक मान्यताएं, सांस्कृतिक गलतफहमियां और पूर्वाग्रह। यदि किसी रिश्तेदार का अंग न मिल पाए तो इन सभी कारणों से अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता वाले मरीजों का इन्तजार लम्बा होता चला जाता है।