तालमेल एक्सप्रेस
प्रयागराज। महाराष्ट्र के गढ़चिरोली में मल्लोजुला वेणुगोपाल (उर्फ अभय, भूपति, मास्टर, सोनू), जिन्होंने कभी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के प्रवक्ता के रूप में काम किया था, ने 15 अक्टूबर 2025 को आत्मसमर्पण कर दिया। वे पार्टी की सबसे ऊंची इकाई “पॉलित ब्यूरो”, “सेंट्रल कमेटी” और “सेंट्रल मिलिट्री कमीशन” के सदस्य थे। 69 साल के वेणुगोपाल के साथ 60 अन्य माओवादी भी सरेंडर हुए, जिनमें कई जोनल और डिवीजनल सदस्य शामिल थे। यह माओवादी संगठन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। वेणुगोपाल कभी पार्टी के मुख्य विचारक थे और दंडकारण्य इलाके में सशस्त्र दलों पर उनका गहरा प्रभाव था। उनका सरेंडर पार्टी के अंदर एक गहरी वैचारिक और रणनीतिक टूट को दिखाता है। इससे कुछ महीने पहले, मई 2025 में, पार्टी के महासचिव और शीर्ष नेता नामबल्ला केशव राव (उर्फ बसवराजु) की मौत हो गई थी। इससे पहले भी कई बड़े माओवादी नेताओं को सुरक्षा बलों ने खत्म किया था। वेणुगोपाल का आत्मसमर्पण सिर्फ एक रणनीतिक कदम नहीं था, बल्कि विचारों में बड़ा बदलाव था। जो व्यक्ति कभी हिंसक संघर्ष का कट्टर समर्थक था, वही अब हथियार छोड़ने और बातचीत का पक्षधर बन गया। उन्होंने पार्टी के भीतर सशस्त्र लड़ाई खत्म करने की बात कही, जिसके बाद पार्टी की सेंट्रल कमेटी ने उन्हें “देशद्रोही” कहा। उनकी पत्नी विमला सिदाम (उर्फ तारा) ने भी जनवरी 2025 में आत्मसमर्पण किया था, जिससे साफ हो गया कि वे इस विचारधारा से मोहभंग कर चुके हैं।महाराष्ट्र पुलिस ने अपनी खुफिया शाखा और C-60 कमांडो की मदद से उनका आत्मसमर्पण करवाया। बताया जाता है कि उनके एक पुराने साथी, अनिल, के पत्र ने उन्हें प्रभावित किया, जिसमें उसने हिंसा की निरर्थकता और सामान्य जीवन में लौटने की बात कही थी। वेणुगोपाल के सरेंडर के एक दिन बाद ही छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में 50 माओवादी कार्यकर्ताओं ने भी बीएसएफ के सामने आत्मसमर्पण किया। इनमें 32 महिलाएं थीं और उन्होंने 39 हथियार, जिनमें AK-47, INSAS राइफल, LMG और ग्रेनेड लॉन्चर शामिल थे, जमा किए। यह वही अबूझमाड़ इलाका था, जिसे कभी माओवादी “मुक्त क्षेत्र” कहा करते थे। अब वहां 2024 से चल रहे “माड़ बचाओ अभियान” के बाद से 100 से ज्यादा माओवादी मारे जा चुके हैं। वेणुगोपाल का आत्मसमर्पण अब माओवादियों के शहरी नेटवर्क और फंडिंग चैनलों के बारे में अहम जानकारी देने में मदद कर सकता है। खुफिया सूत्रों का कहना है कि आने वाले महीनों में माड़-उत्तर बस्तर क्षेत्र से और 100 माओवादी आत्मसमर्पण कर सकते हैं। रणनीतिक रूप से देखा जाए तो अब माओवादी नेतृत्व तेजी से कमजोर हो रहा है। अब जो नेता बचे हैं, जैसे थिप्पारी तिरुपति (उर्फ देवुजी) और मडवी हिडमा, उनके पास वैचारिक ताकत की कमी है। आंदोलन अब सिर्फ हिंसक समूहों तक सिमट गया है, जिनके पास कोई ठोस दिशा या जनसमर्थन नहीं बचा। गृह मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अब माओवादी हिंसा सिर्फ 11 जिलों तक सीमित है, जबकि 2013 में यह 126 जिलों में फैली हुई थी। इस साल (2025) में अब तक 333 माओवादी मारे गए हैं, 398 गिरफ्तार हुए हैं और 1,351 ने आत्मसमर्पण किया है। कमजोर नेतृत्व, मजबूत सुरक्षा अभियान और घटती वैचारिक ऊर्जा से यह साफ है कि माओवादी आंदोलन अब अपने अंत की ओर बढ़ रहा है। गृह मंत्री अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक “नक्सलवाद खत्म करने” का लक्ष्य रखा है।वेणुगोपाल का आत्मसमर्पण सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक विचारधारा के अंत का प्रतीक है — एक ऐसा व्यक्ति जिसने कभी क्रांति की आवाज उठाई थी, अब संविधान के रास्ते पर लौट आया है। शायद यही माओवादी आंदोलन के अंत की शुरुआत है।
लेखक: दीपक कुमार नायक
(संघर्ष प्रबंधन संस्थान के शोध सहयोगी)