महाकुम्भ में बांस और लकड़ी से साधु संतो और अखाड़ों के शिविर और प्रवेश द्वार का कर रहे हैं निर्माण
महाकुम्भ 2025
प्रयागराज महाकुम्भ को ईकोफ्रेंडली स्वरूप दे रहे हैं अन्य प्रदेशों से आए श्रमिक
बिहार ,गुजरात, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल से आए 25 हजार से अधिक कारीगर और श्रमिक दे रहे हैं सेवा
देश के कई राज्यों के कामगारों के लिए रोजगार का माध्यम बन रहा है महाकुम्भ
प्रयागराज, 1 दिसंबर। जनवरी 2025 से संगम की रेती पर आस्था का महा समागम महाकुम्भ आयोजित होने जा रहा है। इस आयोजन में पुण्य का भागीदार बनने के लिए देश विदेश से लाखों लोग प्रयाग की इस पुण्य भूमि में वास करेंगे। इसके लिए यहां बड़ी संख्या में अस्थाई शिविरों का निर्माण हो रहा है। कई राज्यों से कामगार और श्रमिक इसमें अपनी सेवा दे रहे हैं। यानी महाकुम्भ दूसरे प्रदेश से आए हजारों लोगों के लिए भी रोजगार का माध्यम बन रहा है। यही नहीं, दूसरे प्रदेशों से आए ये श्रमिक यहां इको फ्रेंडली शिविरों के निर्माण में भी अपना योगदान दे रहे हैं।
ईको फ्रेंडली शिविर निर्माण की लगी होड़
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार प्रयागराज महाकुम्भ को दिव्य भव्य, स्वच्छ और व्यवस्थित स्वरूप प्रदान कर रही है। सरकार की मंशा कुम्भ मेला क्षेत्र को पॉलीथीन मुक्त रखने की है। सरकार की इस मंशा को आगे बढ़ा रहे हैं यहां अस्थाई शिविर लगाने वाली संस्थाएं और साधु संत। अपर कुम्भ मेला अधिकारी विवेक चतुर्वेदी बताते हैं कि महाकुम्भ क्षेत्र में इस बार 8 हजार से अधिक संस्थाएं बसनी हैं जो पिछले कुम्भ की तुलना में डेढ़ गुना अधिक हैं। इन संस्थाओं में 4500 संस्थाएं ऐसी हैं जो महाकुम्भ में सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए अपने शिविर लगाती हैं। इन सभी संस्थाओं ने अपने अपने शिविर निर्माण में इस बार बांस से बने शिविर और प्रवेश द्वार निर्माण को प्राथमिकता दी है।
त्रिवेणी की रेती पर वास करने की परंपरा
शास्त्री पुल के नीचे शिविर का निर्माण करा रहे देवरहा बाबा न्यास मंच के महंत राम दास का कहना है कि महाकुम्भ हो या माघ मेला त्याग और संयम के साथ त्रिवेणी की रेती पर वास करने की परम्परा रही है। इसके लिए कुटिया संस्कृति का भाव बांस से बने शिविरों में ही आता है। इसलिए धार्मिक संस्थाओं में बन रहे शिविरों में ईको फ्रेंडली शिविर बनाने को प्राथमिकता दी जा रही है। अखाड़ा क्षेत्र में श्री पंचायती अखाड़ा महा निर्वाणी में भी 32 कॉटेज बन रही हैं जो बांस के हैं।
कई राज्यों से आए कारीगर और श्रमिक कर रहे हैं निर्माण
इन शिविरों और प्रवेश द्वार को तैयार करने के लिए देश के पांच से अधिक राज्यों से कारीगर और श्रमिक भी महाकुम्भ आए हैं। बिहार , गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश से 25 हजार से अधिक लोग इस समय महाकुम्भ में इस कार्य में लगे हैं। बिहार के पूर्णिया से आए शिविर बनाने वाले कारीगर शंभू का कहना है कि बिहार के चार जिलों से सात हजार से अधिक लोग महाकुम्भ में यह काम कर रहे हैं। शिविर की कुटिया, यज्ञशाला और एकांत साधना कक्ष के निर्माण के लिए बांस और सरपट से बनाए जा रहे शिविरों की मांग अधिक है। अखाड़ों में कॉटेज बना रहे रजत निषाद कहते हैं कि 15 दिनों के अंदर उन्हें 32 कुटिया निर्माण करने का काम मिला है।
श्रमिकों और कामगारों के लिए रोजगार का जरिया बना महाकुंभ
इस बार चार हजार हेक्टेयर में महाकुम्भ मेला बसाया जा रहा है। मेला क्षेत्र में 25 सेक्टर बनाए जा रहे हैं और हर सेक्टर में 400 से अधिक संस्थाएं बसाई जा रही हैं। इन संस्थाओं को बसाने में हजारों लोगों को रोजगार मिल रहा है। बाहर के प्रदेशों से आए कामगारों के अलावा स्थानीय स्तर पर भी हजारों लोगों को इससे काम मिला है। स्थानीय स्तर पर दारागंज, हेतापट्टी, मलवा छतनाग, झूंसी में माघ मेला में शिविरों का निर्माण करने वाले कारीगरों की यहां बहुत मांग है। इसके अलावा टेंटेज का काम करने वाले स्थानीय लोगों को भी महाकुंभ से रोजगार मिल रहा है।
Mahakumbh 2025: Workers from other states contribute to eco-friendly setup in Prayagraj
Yogi govt ensures bamboo and wood usage for building camps and entry gates at Mahakumbh 2025
Over 25,000 artisans and laborers from Bihar, Gujarat, Maharashtra, and West Bengal are providing services for Mahakumbh 2025
Mahakumbh 2025 emerges as a source of employment for workers from across the country
Prayagraj, December 1
The upcoming Mahakumbh 2025, under the leadership of the Yogi government, is not only a spiritual and cultural spectacle but also a significant source of employment for thousands of workers from across the country. As preparations gain momentum, the event is providing livelihood opportunities to laborers and craftsmen from various states, who are contributing to the construction of temporary camps and infrastructure in the holy city of Prayagraj.
With lakhs of pilgrims from India and abroad expected to attend, a vast number of eco-friendly camps are being set up to accommodate the visitors. Workers from other states are playing a crucial role in building these sustainable structures, ensuring that the event aligns with environmental goals.
The Yogi government in Uttar Pradesh is working to make the Prayagraj Mahakumbh a grand, clean, and well-organized event. One of the key goals is to keep the Kumbh Mela area completely free of polythene. Supporting this initiative are the organizations setting up temporary camps and the saints participating in the event.
According to Additional Kumbh Mela Officer Vivek Chaturvedi, over 8,000 organizations are expected to set up camps this time, which is 1.5 times more than the previous Kumbh. Out of these, 4,500 organizations are dedicated to spreading the teachings of Sanatan Dharma through their camps.
These organizations have prioritized the use of eco-friendly materials like bamboo for building their camps and entry gates, ensuring that the event aligns with environmental sustainability while promoting religious and cultural values.
Mahant Ram Das of Devaraha Baba Nyas Manch, overseeing camp construction under the Shastri Bridge, emphasized that the spirit of the “kutiya culture” is best reflected in bamboo-built camps. This tradition aligns with the essence of living on the sandy banks of the Triveni with sacrifice and restraint during Mahakumbh or Magh Mela. Similarly, in the Akhara area, 32 cottages are also being built in Shri Panchayati Akhara Maha Nirvani, which are made of bamboo.
To meet the demand for these eco-friendly camps and gateways, over 25,000 artisans and laborers from five states, including Bihar, Gujarat, Maharashtra, West Bengal, and Madhya Pradesh, are working tirelessly. Artisans like Shambhu from Bihar’s Purnia district shared that more than 7,000 workers from four districts of Bihar are currently engaged in constructing bamboo huts, yajna halls, and meditation rooms.
Rajat Nishad, another craftsman, revealed that he has been tasked with building 32 bamboo cottages within 15 days, reflecting the high demand for sustainable and culturally rooted structures at this grand spiritual event.
Notably, Mahakumbh 2025 is being set up over an expansive area of 4,000 hectares, divided into 25 sectors. Each sector will house over 400 organizations, creating massive employment opportunities for thousands of people.
In addition to workers from other states, the event has generated significant work for locals. Skilled artisans from areas like Daraganj, Hetapatti, Malwa Chhatnag, and Jhunsi, known for their expertise in constructing camps for the Magh Mela, are in high demand.
Local workers specializing in tenting and camp setup are also benefiting from the preparations, reflecting Mahakumbh’s role in boosting the local economy while celebrating spirituality and culture.